Thursday, January 17, 2008

खोलो खोलो दरवाज़े

खोलो खोलो दरवाज़े  
परदे करो किनारे
खूंटे से बंधी है हवा
मिल के छुदाओ सारे

आजो पतंग लेके
अपने ही रंग लेके
आसमान का शामियाना
आज हमें है सजाना

क्यों इस कदर हैरान तू
मौसम का है ... मेहमान तू
ओ....., दुनिया सजी तेरे लिए
खुद को ज़रा पहचान तू

तू धुप हैं छम से बिखर
तू है नदी ....ओ बेखबर
बह चल कहीं..... उड़ चल कहीं
दिल खुश जहाँ..... तेरी तो मंजिल है वहीं

ओ,..... क्यों इस कदर हैरान तू
मौसम का है.... मेहमान तू

बासी ज़िंदगी उदासी
ताजी हँसने को राज़ी
गरमा गरमा साड़ी
अभी अभी है उतारी

ओ, ज़िंदगी तो हैं बताशा
मीठी मीठी सी है आशा
चख ले रख ले
हथेली से ढक ले इसे

तुझ में अगर..... प्यास है
बारिश का घर... भी पास है
ओ..., रोके तुझे कोई क्यों भला
संग संग तेरे ... आकाश है

तू धुप हैं
छम से बिखर
तू है नदी.. ओ बेखबर
बह चल कहीं ... उड़ चल कहीं
दिल खुश जहाँ .... तेरी तो मंजिल है वहीं

खुल गया .... आसमान का रास्ता देखो खुल गया
मिल गया.... खो गया था जो सितारा मिल गया, मिल गया

ओ,... रोशन हुई साड़ी ज़मीन
जगमग हुआ ..सारा जहाँ
उड़ने को तू.... आजाद है
बन्धन कोई ..अब है कहाँ

तू धुप हैं...
छम से बिखर
तू है नदी... ओ बेखबर
बह चल कहीं... उड़ चल कहीं
दिल खुश जहाँ .....तेरी तो मंजिल है वहीं......................!!!!

ओ, क्यों इस कदर हैरान तू
मौसम का है मेहमान तू

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